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भारत में महिला सशक्तिकरण और वर्त्तमान स्थिति


भारत में महिला सशक्तिकरण और वर्त्तमान स्थिति

भारतीय समाज हो या वैश्विक समाज, जीवन की उत्पत्ति हो या देश दुनिया का विकास महिलाओं की हिस्सेदारी हमेशा बराबर की रही है और होनी भी चाहिए। जैसे मृत्यु जीवन का दूसरा पहलु है, जैसे सूरज की तपिस और चाँद की शीतलता भी जरूरी है,जैसे खाने के बाद पानी की आवश्यकता होती है और जैसे संघर्ष और सफलता के अपने अपने महत्व हैं ठीक वैसे ही पुरुष और स्त्री दोनों ही एक सिक्के के दो पहलु हैं और किसी एक पहलु के बिना उस सिक्के का ना तो कोई महत्व है और न ही कोई मोल। 

प्ररम्भिक स्थिति

भारत में महिलाओं ने बदलाव के एक सम्पूर्ण चक्र को देखा है।  प्राचीन काल में भारतीय महिलाओं की स्थिति पुरुषो से बेहतर थी परन्तु पुनः मध्ययुगीन काल में उनकी स्थिति में काफी गिरावट आयी।  प्रारंभिक काल में महिलाओं को पुरुषों से कदम से कदम मिलाकर चलने का अवसर प्रदान किया जाता था।  उन्हें शिक्षा दी जाती थी, उन्हें अपना वर चुनने का अधिकार था तथा वो युध्याभ्यास भी करती थीं। उन्हें वेदों इत्यादि का भी ज्ञान दिया जाता था।  उस समाज में स्त्रियों का विवाह भी एक परिपक्व उम्र में किया जाता था। प्राचीन उपनिषदों एवं ग्रंथो जैसे ऋग्वेद में आप पाएंगे कि उस समय महिला सन्यासी एवं संत भी हुआ करती थीं। गार्गी और मैत्रेयी का नाम उनमे से उल्लेखनीय है।
                     समय  का चक्र घूमने के साथ ही महिलाओं की स्थिति में गिरावट शुरू हो गयी।  हालांकि कुछ अच्छी स्थिति होने के प्रमाण भी मिले जिससे पता चलता है कि कुछ हद तक महिलाओं की स्थिति तब तक कुछ बेहतर थी। पुरातात्विक वैज्ञानिकों के अनुसार मोहनजोदड़ो की सभ्यता से ज्ञात होता है कि ये सभ्यता महिला प्रधान थी। लेकिन इसके बाद का समय महिलाओं के पतन व पुरुषों के चारित्रिक पतन का दौर रहा। समाज में कई बुराइयों ने अपनी जड़ें जमा ली। महिलाओं की आजादी व अधिकारों को सीमित कर दिया गया व सती प्रथा की शुरुआत हो गई। पर्दा प्रथा, सती प्रथा, बाल विवाह इत्यादि तो जैसे आम सामाजिक जीवन शैली बन गई। पुनर्विवाह पर भी रोक लगा दी गई। राजस्थान जैसे राज्यों में जौहर प्रथा की जड़े मजबूत हो गईं। उस समय के समाज का वातावरण पूर्ण रूप से महिला विरोधी हो चुका था। महिलाओं को दबाना- कुचलना  पुरुषों के वर्चस्व व शक्ति प्रदर्शन का एक सशक्त माध्यम बन चुका था।

                        लेकिन वो कहते हैं ना कि हर विरोध में प्रतिरोध की एक चिंगारी जीवित रहती है। ऐसे ही चिंगारी रूपी कुछ संघर्षरत महिलाएं उभरकर सामने आई और शीर्ष को हासिल किया। रजिया सुल्तान जो कि दिल्ली पर शासन करने वाली पहली महिला सम्राज्ञी थीं।  गोंड की महारानी दुर्गावती ने 15 वर्षों तक शासन किया व अकबर के सेनापति आसफ खान के साथ युद्ध में मारी गईं। अहमदनगर की सम्राज्ञी चांदबीबी ने अकबर की सेना से लोहा लिया व उन्हें खदेड़ कर अहमदनगर की रक्षा की। शिवाजी की मां जीजाबाई को एक योद्धा और प्रशासक के रूप में उनकी क्षमता के कारण क्वीन रीजेंट के रूप में पदस्थापित किया गया। ऐसी अनेक महिलाएं रहीं जिन्होंने आंधियों में जलते एक चिराग के रूप में आशा जीवित रखी।

                 अंग्रेजों के शासन काल में भी भारतीय महिलाओं को आजादी व अधिकारों से परे ही रखा जाता रहा। बाल विवाह, सती प्रथा तथा विधवा पुनर्विवाह का आभाव समाज में अभी भी जारी था। महिलाओं को केवल घरेलू कार्य, मर्दों व पुरुषों की चाकरी के योग्य ही समझा जाता रहा। उन्हें शिक्षा के अधिकारों से वंचित रखा गया। इस समय तक भी महिलाओं का मुख्य कार्य घर का काम करना वह अपने पतियों की सेवा करना होता था। अंग्रेजों द्वारा भारतीय महिलाओं का आधिकारिक व शारीरिक शोषण किया जाता था। अंग्रेजों की आड़ में भारतीय पुरुष भी शोषण करते थे महिलाओं की स्थिति काफी दयनीय हो चली थी। ऐसे में कुछ समाज सुधारकों जैसे राजा राममोहन राय, ईश्वर चंद्र विद्यासागर तथा ज्योतिबा फूले इत्यादि ने महिलाओं के उत्थान के लिए कई लड़ाइयां लड़ीं। इन्हीं लड़ाइयों के फलस्वरुप बाल विवाह, सती प्रथा बंद हो पाई व  विधवा पुनर्विवाह की शुरुआत हुई। हालांकि अंग्रेजी शासन के विपरीत समय में भी कुछ महिलाएं रही जिन्होंने हालातों से मुकाबला किया और उदाहरण स्थापित किया। कर्नाटक में कित्तूर की रानी कित्तूर चेन्नम्मा ने अंग्रेजो के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह किया। झांसी की रानी ने अंग्रेजों की सेना से लोहा लेते हुए वीरगति को प्राप्त हुईं। अवध की सह-शासिका बेगम हजरत महल ने 1857 की क्रांति में नेतृत्व प्रदान किया। इसी प्रकार अन्य महिलाओं ने दीपक की लौ की भांति जलते हुए आशा प्रदान की। हालांकि आजादी के बाद भी महिलाओं की स्थिति में बहुत अधिक बदलाव नहीं हुआ और उनकी स्थिति डिज्नी दयनीय ही रही। ऐसे में महिला सशक्तिकरण की आवश्यकता जान पड़ी और धीरे-धीरे महिला सशक्तिकरण की मांग उठने लगी।

महिला सशक्तिकरण क्या है ?

                     महिला सशक्तिकरण का आशय  महिलाओं को मजबूत बनाने से है। महिलाओं को इतना सक्षम बनाना कि वह अपने अच्छे-बुरे का फैसला स्वयं ले सकें। समाज में सम्मान के साथ रह सकें। उन्हें बराबरी का मौका मिले। पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल सके। हर वो काम कर सके जिस जिस में उन्हें खुशी मिलती हो। अच्छे व उच्च शिक्षा का अवसर प्रदान हो। रोजगार के समान अवसर प्राप्त हो साथ ही साथ समाज में सुरक्षा भी प्राप्त हो। महिला सशक्तिकरण को हम सामान्यतया कुछ इसी रूप में समझ सकते हैं।

आखिर महिला सशक्तिकरण की आवश्यकता क्यों है ?

                    जैसा कि हम सभी जानते हैं कि भारत एक पुरुष प्रधान देश है, जहां महिलाओं को पुरुषों के अपेक्षाकृत कमतर आंका जाता है। महिलाओं को पुरुषों से नीचे का स्थान दिया जाता है। उन्हें पुरुषों से कम सक्षम समझा जाता है। महिलाओं का काम घरेलू कार्य, पति की सेवा व घर की देखभाल समझा जाता है। आए दिन महिलाओं के साथ छेड़खानी होती रहती है, उनका रेप हो जाता है, उनका शोषण कर लिया जाता है, उनके ऊपर एसिड अटैक हो जाता है व महिलाओं की हत्या कर दी जाती है। समाज में महिलाओं को उचित सम्मान नहीं मिलता है। उन्हें उचित सुरक्षा नहीं प्राप्त होती है। स्थिति इतनी खतरनाक हो चली है कि बालिका को गर्भ में ही मार दिया जाता है या महिलाओं का गर्भपात करा दिया जाता है। पुरुषों का वर्चस्व समाज में अधिकाधिक रूप से स्थापित होता जा रहा है। भारत की वर्तमान जनसंख्या 135 करोड़ से अधिक है जिसमें लगभग 48% महिलाएं हैं अतः भारत के विकास में जितनी हिस्सेदारी पुरुषों की है उतनी ही हिस्सेदारी महिलाओं की भी है। अगर इस आधी आबादी को हटा दिया जाए तो भारत का विकास असंभव हो जाएगा। जहां के विकास में महिलाओं की 50% हिस्सेदारी हो तो वहां के प्रशासन की जिम्मेदारी है कि इस 50% के आबादी को पूरे जोर-शोर से आगे बढ़ाएं, उन्हें सशक्त बनाए, उन्हें हर क्षेत्र में समान अवसर प्रदान करें। समाज में हो रहे अत्याचारों से मुक्त कराएं, महिलाओं के विरुद्ध व्याप्त बुराइयों को नष्ट करे व सामाजिक सुरक्षा भी मुहैया कराए। जब तक इस देश में महिलाओं का सशक्तिकरण नहीं होगा तब तक इस देश का विकास संभव नहीं होगा।

महिलाओं की वर्तमान स्थिति व सरकार के प्रयास

                              उपर्युक्त तथ्यों के साथ ही जैसे-जैसे समय बीता महिलाओं की स्थिति में सुधार आना शुरू हुआ। पहले की अपेक्षाकृत वर्तमान में महिलाओं को काफी हद तक आजादी और अधिकार मिलने लगा है। स्त्रियों को शिक्षा के क्षेत्र में बढ़ावा मिल रहा है। हम देखते हैं कि अब शहरी क्षेत्रों में महिलाओं के ऊपर घरेलू कामकाज करने व घर की देखभाल करने का बोझ नहीं थोपा जाता है। अब यह महिलाएं प्रारंभिक व उच्च स्तरीय शिक्षा के लिए स्कूल व कॉलेज भेजी जा रही हैं। हालांकि ग्रामीण क्षेत्रों में अभी इतनी सहनशीलता नहीं आई है। गांव में अभी भी घर के सारे काम का आज सिखाए जाते हैं परंतु साथ ही साथ उन्हें पढ़ने हेतु स्कूल व कॉलेज भेजा जाता है। गांवों में अधिक से अधिक लड़कियों को भले ही उच्च शिक्षा ग्रहण करने का मौका नहीं मिल पा रहा हो परंतु उन्हें प्रारंभिक शिक्षा अवश्य ही दिलाई जा रही है। सरकार व समाज सुधारकों के अथक प्रयासों के बदौलत महिलाओं को रोजगार के समान अवसर मिल पा रहे हैं। आजकल हम देख सकते हैं कि बहुत भारी मात्रा में, चाहे सरकारी क्षेत्र हो या प्राइवेट सेक्टर हर क्षेत्र में महिला कर्मचारियों की अधिकता है। चाहे सरकारी क्षेत्र में भले ही महिला कर्मचारी कम हों परंतु प्राइवेट सेक्टर में यह अधिकाधिक संख्या में काम कर रही हैं और समाज व देश के विकास में अपना सहयोग दे रही हैं। सरकारी क्षेत्रों में महिलाओं को बढ़ावा देने के लिए आरक्षण की नीति लागू है जो इनके सुदृढ़ीकरण में बहुत सहायक साबित हो रहा है। समाज में अब उनके प्रति सुरक्षा का माहौल काफी हद तक तैयार हो रहा है। अब महिलाएं अपने पसंद का काम कर रही हैं, अपने पसंद के कपड़े पहन रही हैं, जहां मर्जी वहां जा सकती हैं, किसी के भी साथ रह सकती हैं। सरकार और कानून भी इसमें उनकी मदद कर रही है। गर्भपात के खिलाफ सख्त कानून बन गया है जिससे गर्भपात में काफी कमी आई है। देश के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री तथा संसद से लेकर सेना हो या सरकारी क्षेत्र, बॉलीवुड हो या विज्ञान, इंजीनियरिंग हो या बावर्ची, हर क्षेत्र में महिलाओं की सहभागिता एवं बोलबाला है। हालांकि आदर्श समाज महज एक कल्पना तक ही सीमित होकर रह जा रहा है। वास्तविकता में आदर्श समाज का निर्माण बहुत कठिन है जिसके परिणाम स्वरूप आज भी महिलाओं का रेप, शारीरिक शोषण, मानसिक शोषण, छेड़खानी, उनकी हत्या, एसिड अटैक तथा लूटमार इत्यादि घटनाएं देखी जा सकती हैं। हालांकि कोई भी सरकार हो, हर संभव प्रयास कर रही है कि महिलाओं का सशक्तिकरण हो सके।
        सरकार द्वारा किए जाने वाले कुछ प्रयास निम्नलिखित हैं:-
  • महिला एवं बाल विकास मंत्रालय
2006 में इसे एक पृथक मंत्रालय के रूप में स्थापित किया गया, जिसका कार्य है, महिलाओं एवं बच्चों का संपूर्ण विकास, समाज में हर महिला के प्रति हर क्षेत्र में समानता, उनके अधिकारों की रक्षा करना व उन्हें बढ़ावा देना।
  • महिलाओं से संबंधित कानून महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा लाए गए जिनमें से कुछ निम्नलिखित हैं:-
अनैतिक व्यापार निरोधक कानून, महिलाओं का अश्लील प्रस्तुतीकरण निरोधक कानून, दहेज निरोधक कानून, सती प्रथा निषेध कानून, बाल विवाह निषेध कानून, घरेलू हिंसा से महिलाओं की रक्षा कानून, राष्ट्रीय महिला आयोग कानून इत्यादि।
  • बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ
इस अभियान के तहत बालिकाओं के बेहतर शिक्षा के प्रयास किए जा रहे हैं तथा बेहतर लिंग अनुपात सुनिश्चित किया जा रहा है। गर्भपात पर रोक व लड़की का बचाव व उसकी सुरक्षा सुनिश्चित की जा रही है।
  • प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना
इस योजना के तहत सरकार ने पात्र गर्भवती और स्तनपान कराने वाली माताओं के लिए मातृत्व लाभ कार्यक्रम के क्रियान्वयन की देशभर में घोषणा की है। इस योजना में कुछ विशेष शर्तों को पूरा करने वाली महिलाओं को गर्भावस्था और स्तनपान के दौरान उनके बैंक/डाकघर डीबीटी मोड में पीडब्ल्यू और एलएम खाते में सीधे ₹5000 की नकद राशि डाल दी जाती है।
  • वन स्टॉप सेंटर
ऐसी महिलाएं जिन्होंने हिंसा का सामना किया है, उन्हें चिकित्सा, पुलिस, कानूनी और मनोवैज्ञानिक काउंसलिंग सहायता इन केंद्रों पर मिल सकती है। इन स्थानों पर महिलाएं और स्थाई तौर पर रह भी सकती हैं। अब तक 31 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में 138 वन स्टॉप सेंटर काम कर रहे हैं। इन केंद्रों में 4000 से अधिक महिलाओं को सहायता दी जा चुकी है।
  • महिला हेल्पलाइन
किसी भी आपात स्थिति में या विपरीत परिस्थिति के लिए एक हेल्पलाइन नंबर जारी किया गया है, जो पूरे देश भर में समेकित रूप से कार्य करता है। इसका सिंगल यूनिफॉर्म नंबर 181 है।
  • मोबाइल फोन पर पैनिक बटन
महिलाएं किसी भी विषम परिस्थिति में पड़ने पर इस पैनिक बटन का प्रयोग कर सकती हैं मोबाइल फोन पर एक पैनिक बटन उपलब्ध कराया जा रहा है।
  • महिला पुलिस स्वयंसेवी
महिला पुलिस स्वयंसेवीयों का प्रमुख कार्य महिलाओं के खिलाफ हिंसा जैसे- घरेलू हिंसा, बाल विवाह, दहेज उत्पीड़न और सार्वजनिक स्थलों पर महिलाओं के साथ होने वाली हिंसा की जानकारी अधिकारियों/पुलिस को देना है।
  • पुलिस बल में महिलाओं के लिए आरक्षण।
  • हमले को दिव्यांगता के रूप में शामिल करना।
  • लिंग संबंधी बजट बनाने की पहल।
  • मृत्यु प्रमाण पत्र पर विधवा का नाम अनिवार्य होना।
  • विधवाओं के लिए आश्रय।
  • पंचायतों में महिला पंचों का प्रशिक्षण।
  • मातृत्व अवकाश की अवधि में बढ़ोत्तरी।
  • कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न का कानून लागू करना।
  • राष्ट्रीय महिला कोष का निर्माण।
  • भारत की महिला प्रदर्शनी/महोत्सव।
  • महिला ई-हाट।
  • राष्ट्रीय महिला नीति इत्यादि।
                           महिलाओं के उत्थान के लिए लगातार प्रयास किए जाते रहे हैं और आगे भी किए जाते रहेंगे। परंतु एक बात गौर करने की है कि महिला सशक्तिकरण का दायित्व भी लगभग पुरुषों के हाथ में है। हालांकि महिलाएं भी इसके लिए लड़ी हैं परंतु उन्हें अब और जोर-शोर से इसके लिए आवाज उठानी होगी। समाज के हर व्यक्ति को प्रयास करना होगा जिससे एक आदर्श समाज का निर्माण हो सके।

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