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Showing posts from August, 2019

फिल्म ‘अंधाधुन’ के बाद क्या दोबारा साथ काम करेंगे आयुष्मान और श्रीराम राघवन ?

फिल्म ‘ अंधाधुन ’ के बाद क्या दोबारा साथ काम करेंगे आयुष्मान और श्रीराम राघवन ? फिल्म ‘ विक्की डोनर ’ से अपने फिल्मी करियर का शुरुआत करने वाले अभिनेता आयुष्मान खुराना अपने डेब्यू से लेकर अब तक लगातार बॉलीवुड में तहलका मचा रहे हैं। अपनी पहली ही फिल्म विक्की डोनर में एक स्पर्म डोनर का किरदार निभाने के लिए आयुष्मान को बेस्ट मेल डेब्यू का फिल्मफेयर अवॉर्ड मिला था। तब से लेकर अब तक आयुष्मान एक से बढ़कर एक हिट फिल्में   कर रहे हैं।                इसी कड़ी में एक खबर सामने आयी है कि फिल्म अंधाधुन में साथ काम करने वाले श्रीराम राघवन और आयुष्मान खुराना दोबारा साथ काम कर सकते हैं। इस थ्रिलर फिल्म को श्रीराम राघवन ने डायरेक्ट किया था जिसने राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार 2018 के तीन पुरस्कार , बेस्ट हिन्दी फिल्म , बेस्ट स्क्रीनप्ले और बेस्ट एक्टर(आयुष्मान खुराना) , जीते थे। द एशियन ऐज के रिपोर्ट के अनुसार निदेशक राघवन और अभिनेता खुराना जल्द ही एक और फिल्म में साथ काम कर सकते हैं। बताते चलें कि राघवन ने एक पटक...

How would 'vada pav' thank you speech on winning global food award:-

How would 'vada pav' thank you speech on winning global food award:- Vada pav vada pav vada paw would have introduced you and me in a similar way. I want to tell you my little story, Vada Pav, if you feel bad or indecent, I will apologize.  I do not know where I was born, but I can definitely say that I grew up in Mumbai. During childhood, very few people knew me during my initial stages, but they say that not everyone changes time and every big thing starts from the small. Time also changed for me, and the city of Mumbai supported me and people here. The children going to school, the workers going to work, the laborers returning from hard labor, gradually everyone adopted me and made a taste of their tongue. Yes, some big people used to keep a distance from me, but with time, these distances disappeared and I also climbed on their tongue. The wheel of time turned around and I got the love of old and children. I would be wrong to say that only Mumbai and the peop...

ग्लोबल फूड अवॉर्ड जीतने पर कैसी होती 'वड़ा पाव' की थैंक्यू स्पीच

ग्लोबल फूड अवॉर्ड जीतने पर कैसी होती 'वड़ा पाव' की थैंक्यू स्पीच   वड़ा पाव वड़ा पाव वड़ा पाव कुछ इसी तरह से आपका और मेरा परिचय हुआ होगा। मैं वड़ा पाव, आप  सब को अपनी छोटी सी कहानी सुनाना चाहता हूं कुछ बुरा या अशोभनीय लगे तो क्षमाप्रार्थी रहूंगा।  मुझे ये तो नहीं पता की मैं पैदा कहां हुआ लेकिन मैं ये जरूर कह सकता हूं कि मैं मुंबई में पला बढ़ा। बचपन में यानी मेरी शुरुआती दौर में मुझे बहुत कम लोग जानते थे लेकिन वो कहते हैं न कि वक्त सबका बदलता है और हर बड़ी चीज की शुरुआत छोटे से ही होती है। वक्त मेरा भी बदला शुरुआत मेरी भी हुई और इसमें मेरा साथ दिया मुंबई शहर ने और यहां के लोगों ने। स्कूल जाते बच्चे, काम पे जाते कर्मचारी, मेहनत मजदूरी से लौटते मजदूर धीरे धीरे सबने मुझे अपनाया और और अपने जुबान का जायका बनाया। हां कुछ बड़े लोग मुझसे थोड़ी दूरी बनाए रखते थे लेकिन वक़्त के साथ साथ ये दूरियां मिटती गईं और मैं उनके भी जुबान पे चढ़ गया। समय का पहिया घूमता गया और बड़े बूढ़े तथा बच्चे सबका प्यार मुझे मिलता गया। मेरा ये कहना ग़लत होगा कि सिर्फ मुंबई ने ही और वहां के लो...

Film Review:- Achhut Kanya (1936)

Film Review:- Achhut Kanya (1936) Film Name - Achhut Kanya (1936) Duration: 136 minutes Director Franz Aspen: Himanshu Rai Banner - Bombay Talkies Limited 'Untouchable Girl' is a famous film made under the banner of Bombay Talkies which exposes the dark side of Indian society. The film is very important because it was made almost ten years before independence. By watching this film, it is known how people lived and what was the social background of that time. The film focuses on the love affair of Dukhiya's son, the untouchable gate keeper of the railway, Kasturi and Pratap, the son of a Brahmin grocery merchant Mohan. The film begins with a railway crossing point of view. A couple arrives in the car to cross the railway crossing. The night is very close and the railway is closed. He tells the gatekeeper to open the door. But the gatekeeper refuses to open the gate. They have to wait under compulsion. On the side of the railway gate is a memorial engraved in ...

फिल्म समीक्षा:- अछूत कन्या

फिल्म समीक्षा:-  अछूत कन्या फिल्म का नाम - अछूत कन्या ( 1936) अवधि: 136 मिनट निर्देशक फ्रांज असपेन: हिमांशु राय बैनर- बॉम्बे टॉकीज लिमिटेड ' अछूत कन्या ' बॉम्बे टॉकीज के बैनर के तहत बनाई गई एक प्रसिद्ध फिल्म है जो भारतीय समाज के अंधेरे पक्ष को उजागर करती है। यह फिल्म बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि इसे स्वतंत्रता से लगभग दस साल पहले बनाया गया था। इस फिल्म को देखकर यह ज्ञात होता है कि लोग कैसे रहते थे और उस समय की सामाजिक पृष्ठभूमि क्या थी। यह फिल्म दुखिया के बेटे के प्रेम संबंध , रेलवे के अस्पृश्य गेट कीपर , कस्तुरी और ब्राह्मण किराने के व्यापारी मोहन के बेटे प्रताप के साथ प्रेम संबंध पर केंद्रित है। फिल्म की शुरुआत रेलवे क्रॉसिंग के दृष्टिकोण से है। एक जोड़े कार में रेलवे क्रॉसिंग पार करने के लिए आता है। रात बहुत करीब है और रेलवे बंद है। वह द्वार खोलने के लिए द्वारपाल को बताता है। लेकिन द्वारपाल द्वार खोलने से इंकार कर देता है। उन्हें मजबूरी में इंतजार करना पड़ता है। रेलवे गेट के किनारे पर एक स्मारक है जिसमें एक महिला का आकार उत्कीर्ण  है।   ...

Film Review :- The Post

Film Review :- The Post The story of this film is the story of the America's Controversy which caught 4 Presidents and forced the first woman publisher and editor of the country to investigate. This long fight between the government and journalists is the center of this film. Review: 'The Post' tells the story of Pentagon Papers which show the journey of the two main characters. These two characters try to solve the fight between the White House and the Press, the Rashtrapati Bhavan of America, about what the government is trying to hide about the Vietnam War. This film is full of energy. Steven Spielberg's direction is as good as ever. Also the production value and acting of the film is unmatched. This is a wonderful drama about journalism. The best thing about 'The Post' is its speed, the speed with which Spielberg has told this story really surprises you. Graham (Meryl Streep), the two main pillars of the film, who are publishers of The Post, have...

फिल्म समीक्षा :- द पोस्ट (The Post)

  फिल्म समीक्षा :- द पोस्ट (The Post) इस फिल्म की कहानी अमेरिका की उस कंट्रोवर्सी की कहानी है जिसने 4 राष्ट्रपतियों को अपनी चपेट में लिया और देश की पहली महिला पब्लिशर और उसके एडिटर को खोजबीन करने पर मजबूर कर दिया. सरकार और पत्रकारों के बीच की यह लंबी लड़ाई इस फिल्म का केंद्र है. रिव्यू: ' द पोस्ट ' पेंटागन पेपर्स की कहानी सुनाती है जिसमें दो मुख्य किरदारों की यात्रा दिखाई गई है. ये दोनों किरदार अमेरिका के राष्ट्रपति भवन वाइट हाउस और प्रेस के बीच की लड़ाई को सुलझाने की कोशिश करते हैं कि सरकार वियतनाम युद्ध के बारे में क्या छुपाने की कोशिश कर रही है. यह फिल्म बहुत सारी एनर्जी से भरी हुई है. स्टीवन स्पीलबर्ग का निर्देशन हमेशा की तरह बेहतरीन है. साथ ही फिल्म की प्रोडक्शन वैल्यू और एक्टिंग बेमिसाल है. पत्रकारिता के बारे में यह कमाल का ड्रामा है. ' द पोस्ट ' के बारे में सबसे अच्छी बात है इसकी गति , जिस गति से स्पीलबर्ग ने ये कहानी सुनाई है वो वाकई आपको चौंकाती है. फिल्म के दो मुख्य स्तम्भ के ग्राहम (मेरिल स्ट्रीप) जो द पोस्ट की पब्लिशर हैं और मर्दों की स...